अर्थिंग
विद्युत् उपकरणों कर करंट रहित लोहे के भागों को धरती के साथ बहुत कम प्रतिरोध के साथ जोड़ना ताकि फाल्ट की अवस्था में फाल्टी करंट आसानी से धरती में प्रवाहित हो सके उसे अर्थिंग कहते है ताकि हमारे विद्युत् उपकरणों की तथा मानवीय शरीर को फाल्टी करंट से बचाया जा सके
अर्थिंग की आवश्यकता
फाल्ट की अवस्था में बहने वाले अत्यधिक करंट से बचाव के लिए अर्थिंग का प्रयोग किया जाता है जिसके निम्न महत्व है
1.आसमानी बिजली से विद्युत् उपकरणों तथा ऊँचे भवनों को बचाने के लिए अर्थिंग का प्रयोग किया जाता है
2.ओवर हैड लाइनों या उनसे संबधित उपकरणों को भी आसमानी बिजली से बचाने के लिए भी अर्थिंग का प्रयोग किया जाता है
3.मानवीय शरीर को विद्युत् झटके से बचाने के लिए अर्थिंग का प्रयोग किया जाता है
4.विद्युतीय फाल्ट के कारण लगने वाली आग की संभावना कम हो जाती हैं
5.लाइन वोल्टेज को स्थिर रखने के लिए जनरेटर तथा ऑल्टरनेटर व ट्रांसफार्मर के न्यूट्रल प्वांइट को अर्थ किया जाता है
कौन-कौन से बिंदु या प्वांइट अर्थ करने आवश्यक है
- पिन-पिन 5 A या 15 A साकेट के बड़े टर्मीनल को सही प्रकार से अर्थ करना चाहिए
- सभी इलेक्ट्रिकल उपकरणों के धात्विक भाग जैसे लोहे की कंडयूट पाइप या सभी जक्शन बॉक्स इत्यादि अर्थ करने आवश्यक है
- जनरेटर, मोटर और दूसरे उपकरणों के धात्विक भागो को आवश्यकता अनुसार एक या दो जगह अर्थ करना चाहिए
- ट्रांसमिशन लाइनों के टावर,ट्यूबलर पोल, रेल पोल या ओवर हैड लाइनों में प्रयोग होने वाली धात्विक साधनों को अच्छी प्रकार से अर्थ करना चाहिए लाइन के 1.6 किलोमीटर की दूरी के बाद अर्थिंग करना आवश्यक है
- टीन फेज चार तार विद्युत् सप्लाई वितरण प्रणाली में न्यूट्रल चालक को अर्थ करना चाहिए
- हाई वोल्टेज या आरमड केबल के करंट रहित भागो को अर्थ करना चाहिए
भारतीय विद्युत् मानक के अर्थिंग सम्बधित नियमो का वर्णन करो
1.अर्थिंग के स्थान या अर्थ इलेक्ट्रोड की बिल्डिंग से 1.5 मीटर दूरी होनी चाहिए
2.अर्थ इलेक्ट्रोड से डिस्ट्रीब्युशन बोर्ड या पैनल बोर्ड तक जोड़ने वाली अर्थ तार को अर्थ CONTINUITY कहा जाता है जिसका साइज़ 8.5 WG होना चाहिए अर्थ चालक का काट क्षेत्रफल सप्लाई चालक से आधे से कम नही होना चाहिए
3.वायरिंग के लिए प्रयुक्त होने वाली तार का रंग हरा होना चाहिए
4.अर्थ तार तथा अर्थ इलेक्ट्रोड समान पदार्थ से बने होने चाहिए
5.अर्थ वायर अर्थ इलेक्ट्रोड के पास तथा कार्यशाला से पास धरती से एक फुट ऊपर तथा एक फुट नीचे आधा इंच G.I. पाइप द्वारा लगानी चाहिए ताकि यांत्रिक नुकसान से बचाया जा सके
6.अर्थिंग का प्रतिरोध कम-से-कम होना चाहिए जैसे बड़े पावर स्टेशन पर 0.5 OHM मीडियम पर 1 OHM तथा छोटे पावर स्टेशनों पर 2 OHM तथा अन्य कार्यो के लिए 8 OHM से अधिक नही होना चाहिए कार्यो के लिए 8 OHM से अधिक नही होना चाहिए
7.लाइट लोड के लिए एक अर्थिंग तथा तीन फेज लोड के लिए दोहरी अर्थिंग करना आवश्यक है दोहरी अर्थिग के बीच कम से कम से 2 1\2 मीटर की दूरी होना आवश्यक है
8.अर्थिंग करते समय अर्थ इलेक्ट्रोड को धरती से वर्टीकल अवस्था में रखना चाहिए ताकि वह धरती के विभिन्न सतह के सम्पर्क में आ सके
परिभाषाएं-
1.अर्थ इलेक्ट्रोड- वह पाइप,रोड,मैटल प्लेट जो अर्थिंग के लिए धरती में वर्टीकल अवस्था में दबायी जाती है उसे अर्थ इलेक्ट्रोड कहा जाता है
2.अर्थिंग लीड या मुख्य अर्थिंग चालक- वह तार जिसका एक सिरा अर्थ इलेक्ट्रोड से जोड़ा जाता है तथा दूसरा सिरा न्यूट्रल बिंदु या मुख्य डीस्ट्रीब्यूशन बोर्ड तक लगाई जाती है उसे अर्थिंग लीड कहा जाता है
3.सबमैन अर्थिंग लीड– वह तार जो मुख्य वितरण बोर्ड से मैन स्विच तक लगे जाती है उसे सबमैन अर्थिंग लीड कहा जाता है
4.अर्थ CONTINUITY चालक- वह तार जो सब मैन डिस्ट्रीब्यूशन बोर्ड से अलग-अलग बिन्दुओ जैसे जक्शन बॉक्स,स्विच सॉकेट तक लगाई जाती है उसे अर्थ continuity चालक कहा जाता है
अर्थ प्रतिरोध किन-किन बातो पर निर्भर करता है तथा किस प्रकार कम किया जा सकता है
1.भूमि की अवस्था- अर्थ प्रतिरोध भूमि की अवस्था जैसे पथरीली,रेतली आदि पर भी निर्भर करता है तथा रेत में नमी की मात्रा पर भी अर्थ प्रतिरोध निर्भर करता है अर्थात सूखी रेत का प्रतिरोध अधिक तथा गीली का कम होता है
2.भूमि का तापमान- धरती के तापमान के कम ज्यादा होने पर भी अर्थ प्रतिरोध प्रभावित होता है
3.इलेक्ट्रोड की धरती में गहराई- अर्थ इलेक्ट्रोड के धरती में गहराई पर भी अर्थ प्रतिरोध प्रभावित होता है अर्थात इलेक्ट्रोड की गहराई बढाकर प्रतिरोध कम किया जा सकता है
4.अर्थ इलेक्ट्रोड की संख्या- अर्थ इलेक्ट्रोड की संख्या को बढ़ाकर भी अर्थ प्रतिरोध कम किया जा सकता है अर्थात समांतर दूसरी अर्थिंग या आवश्यकता अनुसार करके भी कम किया जा सकता है
5.अर्थ इलेक्ट्रोड की धातु तथा साइज़ पर- अर्थ इलेक्ट्रोड की धातु जैसे ब्रान्स G.I. प्लेट आदि पर तथा इसके साइज़ पर निर्भर करता है
6.अर्थ प्रतिरोध नामक तथा चारकोल की क्वालिटी पर भी निर्भर करता है
अर्थिंग के प्रकार- अर्थिंग निम्न प्रकार की होती है
1.पानी की पाइप द्वारा अर्थिंग- आमतौर इस प्रणाली का प्रयोग प्रयोग नही किया जाता है इस प्रकार की अर्थिंग करते समय यह निश्चित होना चाहिए कि पूरी लम्बाई में लोहे की पाइप प्रयोग की गई है तथा बढिया स्तर के कलम्प लगाए गए है
2.तार या स्ट्रिप अर्थिंग- इस प्रकार की अर्थिंग में प्रयोग की जाने वाली तांबे की तार 5.5 wg से कम नही होनी चाहिए तथा स्ट्रिप की अर्थिंग में 25 mm चौड़ी तथा 1.6 mm मोटाई की होनी चाहिए इस प्रकार की अर्थिंग का प्रयोग पथरीली भूमि में किया जाता है जहाँ गड्डा खोदने आसान न हो
3.रॉड अर्थिंग- इस प्रकार की अर्थिंग में ठोस रॉड जिसका साइज़ 12.5 mm यदि कॉपर की रॉड है और 19 mm यदि GI रॉड का प्रयोग करते है रॉड की गहराई नमी की मात्रा के अनुसार रखी जाती है
4.पाइप अर्थिंग- यह अर्थिंग आमतौर पर मुख्य रूप से प्रयोग की जाती है इस प्रकार अर्थिंग में 38 mm व्यास की GI पाइप कम से कम दो या तीन मीटर लम्बाई की धरती में दबायी जाती है जिसका एक सिरा आगे से टैपर किया जाता है इस पाइप में पानी के लिए 12 mm के सुराख़ किए जाते है ताकि पानी चारो तरफ फ़ैल सके इस पाइप के चारो तरफ कम से कम 15 mm मोटी कोयले तथा नमक की बारी-बारी से सतह बना दी जाती है पानी डालने के साथ-साथ 19 mm की पाइप आवश्यकता अनुसार रीडयुसर द्वारा जोड़ दी जाती है इस पाइप के ऊपर लोहे की जाती युक्त कीप लगा दी जाती है
ताकि पानी डालना आसान रहे कीप के चारो तरफ कंकरिट द्वारा 30*30 cm का बॉक्स बना दिया जाता है जिसके ऊपर लोहे के फ्रेम द्वारा कास्ट आयरन का ढक्कन लगा जाता है अब अर्थ लीड को जोड़ने ले लिए थिम्बल या क्लेम्प के द्वारा जोडकर 12 mm की GI पाइप को RCC बॉक्स से बिल्डिंग की दीवार तक 60 cm की गहराई में दबाकर अर्थिंग स्थान तक लेकर जाएगे ध्यान रहे की अर्थ लीड कही से भी या जोड़ते समय डीली न रहे इस प्रकार की अर्थिंग की गहराई 5 से 6 m रखी जाती है तथा आवश्यकता अनुसार बढ़ायी भी जा सकती है तथा आवश्यकता अनुसार बढायी भी जा सकती है