सोल्डरिंग किसे कहते है

सोल्डरिंग किसे कहते है और यह किस काम आता है

एक ऐसी विधि जिसमे दो एक ही प्रकार की धातुओ,तारो या अलग-अलग प्रकार की धातुओ को एक मिश्रित धातु सोल्डर के साथ करके जोड़ने की प्रक्रिया को सोल्डरिंग कहते है इस विधि को टांके लगाना भी कहते है यांत्रिक रूप से मजबूत बनाने के लिए सोल्डरिंग की जाती है सोल्डरिंग का उपयोग तारो को जोड़ने या उपकरणों को printed सर्किट बोर्ड पर जोड़ने के लिए किया जाता है 

सोल्डरिंग के लिए आवश्यक सामान का विवरण –

1.सोल्डर 

2.फ्लक्स 

3.इलेक्ट्रिक सोल्डरिंग आयरन 

4.ब्लो लैंप 

5.फाइल 

6.सैंड पेपर 

7.सोल्डरिंग पोट

1.सोल्डर-सोल्डर का गलनांक जोड़े जाने वाली धातु के गलनांक से कम होता है सोल्डर दो प्रकार के होते है जो मुख्यत टीन तथा सीसा धातुओ को एक निश्चित अनुपात में मिलाकर बनाया जाता है इसमें जैसे-जैसे सीसे की मात्रा बढती है 

2.सॉफ्ट सोल्डर-इलेक्ट्रोनिक्स या विद्युत् के कार्यो में उपकरण या तारो को जोड़ने के लिए प्रयोग किया जाता है इसमें 50% टीन तथा 50% सीसा मिला होता है

3.हार्ड सोल्डर- इसका प्रयोग ऊँचे तापमान पर सोल्डरिंग करने के लिए किया जाता है धातु के दो या अधिक भागो को कठोर सोल्डर द्वारा जोड़ा जाता है ब्रेंजिंग वेल्डिंग या सिल्वर सोल्डरिंग इस श्रेणी में आते है

सोल्डरिंग करने की विधियां- 

1.Electric Soldering Iron- विद्युत् के कार्यो में जोड़ो को electric soldering iron द्वारा किया जाता हैये 220 वोल्ट,25 वाट से लेकर आवश्यक प्रयोग किए जाते है इसमें ब्रास से बनी हुई बिट लगी होती है जोकि आगे से चपटी होती है सोल्डरिंग करने के लिए विद्युत् के उष्मीय प्रभाव का प्रयोग किया जाता है इससे बिट पूरी गर्म होने के बाद सोल्डर को उसके ऊपर पिघला लिया जाता है उस पिघले हुए सोल्डर को जोड़ पर फ्लक्स लगाकर लगा दिया जाता है सोल्डरिंग करने के बाद बिट को रेंगमर या कपड़े की सहायता से अच्छी तरह कर दो इसे टीनिंग करना कहते है

2.Blow Lamp विधि- यह यंत्र स्टोव की तरह होता है जोकि कैरोसिन से चलता है यह तेल की क्षमता अनुसार आधा लीटर,एक लीटर साइज़ मे मिलते है चलने पर इसके बर्नर द्वारा आग की तेज लपटे निकलती है इसका प्रयोग तारो या केबलो के बड़े JOINT या THIMBLE को भरने के लिए प्रयोग किया जाता है ब्लो लैंपके साथ लेडल तथा फोट की भी आवश्यकता पडती है फोट में सोल्डर को डालकर गर्म किया जाता है 

3.ब्रेजिंग – ब्रेंजिंग या सिल्वर सोल्डरिंग को हार्ड सोल्डरिंग भी कहते हैं ब्रेंजिंग के लिए सोल्डरिंग आयरन का प्रयोग नही किया जाता है ब्रेजिंग द्वारा ऊँचे तापमान पर टूल इत्यादि पर कर्बोइड टिप,ब्रांस के उपकरणों पर टांके या जोड़े लगाने के लिए प्रयोग की जाती है ब्रेंजिंग का जोड़ एक स्थायी जोड़ होता है ब्रेंजिंग के लिए प्रयोग किए जाने वाले सोल्डर को स्पेलटर कहा जाता है जोकि तांबे और जस्त को मिलाकर बनाया जाता है जो स्पेल्टर तांबे या चांदी,चांदी व जस्त को मिलाकर बनता है उसे सिल्वर स्पेल्टर कहा जाता है   

फ्लक्स

सोल्डरिंग करने से लिए दो धातुओ को गर्म किया जाता है इससे हवा धातु से क्रिया करके ऑक्साइड की परत धातु पर जमा कर देती है जोकि एक अच्छी सोल्डरिंग के रास्ते में रुकावट पैदा करती है इस ऑक्साइड की परत को रोकने के लिए फ्लक्स का प्रयोग किया जाता है जोकि एक डी-ऑक्साइड जिंग पदार्थ है फ्लक्स का गलनांक सोल्डर से भी कम होता है कार्य के अनुसार यह तरल,ठोस या पेस्ट के रूप में मिलता है 

फ्लक्स के प्रकार-

1.कोरोसिव फ्लक्स 

2.नॉन-कोरोसिव फ्लक्स 

कोरोसिव फ्लक्स –

ऐसा फ्लक्स जिसमे तेजाब या क्षार की मात्रा होती है उन्हें कोरोसिन फ्लक्स कहते है ऐसे पदार्थ धातु के साथ क्रिया करके धीरे-धीरे उसे क्षति पहुंचाते है इसमें निम्न प्रकार के फ्लक्स आते है 

1.हाइड्रोक्लोरिक एसिड-यह फ्लक्स तरल रूप में मिलता है इसका प्रयोग G.I. तारो या लोहे की चादरों के लिए किया जाता है

2.जिंक क्लोराइड-इसका प्रयोग नर्म लोहे की धातुओ को जोड़ने के लिए किया जाता है 

3.अमोनिया क्लोराइड- इसका प्रयोग देगि(कास्ट आयरन) स्टील आदि में प्रयोग किया जाता है इसके अलावा सूखी बैटरियो में भी इलेक्ट्रोलाइट के लिए प्रयोग किया जाता है

नॉन-कोरोसिव फ्लक्स – 

ऐसा फ्लक्स जिसमे क्षार या तेजाब की मात्रा नही होती है इसलिए धातु के साथ कोई क्रिया नही करते ये भी निम्न प्रकार के होते है –

1.रेंजिन,फ्लक्स साइड,बरोजा- विद्युत् के कार्यो में इस फ्लक्स का प्रयोग किया जाता  है इसके तांबे तथा पीतल की सोल्डरिंग में भी इसका प्रयोग किया जाता है 

2.बोरेक्स-ब्रेंजिग में बोरेक्स फ्लक्स का प्रयोग करते है 

3.आईयर नंबर-7– एलुमिनियम की सोल्डरिंग में इसका ही प्रयोग किया जाता है 

4.चर्बी- प्लाम्बिंग के कार्यो या सीसे की मिश्रित धातुओ के लिए प्रयोग किया जाता है  

विद्युत् परिपथ(electric circuit) 

वह रास्ता जहाँ से करंट बहता है तथा अपना सर्किट पूरा करता है एक पूर्ण सर्किट में विद्युत् का स्त्रोत नियन्त्रण,स्विच,फ्यूज पूर्ण लोड,वायर तक निश्चित कर्म में लगे हो तभी एक सर्किट पूरा होता है 

विद्युत् परिपथ निम्न प्रकार के होते है 

1.पूर्ण या आदर्श परिपथ- वह परिपथ जिसमे लोड बिजली के स्त्रोत की क्षमता अनुसार हो तथा सभी उपकरण जैसे फ्यूज,नियन्त्रण स्विच आदि लगे हो उसे पूर्ण या आदर्श परिपथ कहते है

पूर्ण सर्किट निम्न प्रकार के होते है 

1.श्रंखलाबद्ध सर्किट 

2.समानातर सर्किट 

3.श्रंखलाबद्ध व समानातर सर्किट 

2.शार्ट सर्किट- जब किसी परिपथ में Positive या Negative या फेज तथा न्यूट्रल या फेज तथा अर्थ या दो फेज वायर बिना लोहे के जुड़े जाए उसे शार्ट सर्किट कहते है इस स्थिति में यदि फ्यूज इत्यादि सुरक्षात्मक उपकरण न लगे हो तो हमारे उपकरण जल सकते है

3.खुला सर्किट– जब किसी परिपथ में कही से तार टूट जाए फ्यूज जल जाए,स्विच खुला हो ईएसआई स्थिति में उसे खुला सर्किट कहा जाता है 

श्रंखलाबद्ध सर्किट

जब दो या दो से अधिक उपकरण इस प्रकार जुड़े हो की पहले का(-ve) दुसरे का (+ve) से दुसरे का (-ve) तीसरे के (+ve) से इस प्रकार कर्मबद्ध जुड़े हो उसे श्रंखलाबद्ध सर्किट कहते है

श्रंखलाबद्ध सर्किट की विशेषताए

1.सीरिज सर्किट में करंट सदा बराबर रहता है 

2.कुल वोल्टेज सभी प्रतिरोधो पर ड्राप हुई वोल्टेज के बराबर होतो है 

3.कुल प्रतिरोधो सभी प्रतिरोधो के जोड़ के बराबर होता है अर्थात जितना अधिक जोड़ेगे प्रतिरोध बढ़ता जाएगा 

4.कहीं से भी परिपथ खुल जाने पर पूरा सर्किट या परिपथ बंद हो जाएगा 

समानातर परिपथ

वह परिपथ जिसमे दो या दो से अधिक प्रतिरोधो इस प्रकार जुड़े हो कि सभी के (+ve) सिरे एक साथ तथा (-ve) सिरे एक साथ जुड़े हो 

समानातर परिपथ में करंट,वोल्टेज प्रतिरोधो की निम्न स्थिति होती है

करंट- समानातर सर्किट में कुल करंट सभी शाखाओ में बह रहे करंट के जोड़ के बराबर होता है  

वोल्टेज –समानातर परिपथ में प्रत्येक शाखा में कुल वोल्टेज होता है 

प्रतिरोध- समानातर परिपथ में जीतने अधिक प्रतिरोध जुड़ते जाएँगे कुल प्रतिरोध उतना ही घटता जाएगा

समानातर सर्किट के गुण

1.समानातर परिपथ में कुल करंट सभी शाखाओ के करंट के बराबर होता है 

2.वोल्टेज सभी प्रतिरोधो पर सम्मान रहती है 

3.किसी एक शाखा में परिपथ खुल जाए तो बाकी शाखाओ में करंट बहता है 

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